‘जियें तो अपने बगीचे के गुलमोहर के तले, मरें तो गैरों की गलियों में गुलमोहर के लिए’ कवि दुष्यंत कुमार का यह शेर समझना है तो आपको पहले गुलमोहर के पेड़ों कों भरी धूप में देखना होगा। आजकल जब ग्रीष्म अपने चरम पर है तो लखनऊ जैसे महानगर में जब आते जाते समय गुलमोहर की लालिमा देखती हूं तो मन आनंदित हो जाता है।कि तना रंग है गुलमोहर की पत्तियों में, सूर्य की चटक रोशनी में ऐसा लगता है कि जैसे नववधू ने स्नान के बाद मांग में लाल सिंदूर भर लिया हो। हां प्रकृति भी श्रृंगार करती है तभी तो कविवर प्रसाद ने कामायनी में लिखा है- प्रकृति के यौवन का श्रृंगार… करेंगे कभी ना बासी फूल…
सुबह होने के बाद जब दिन की शुरुआत होते ही सूर्य अपनी किरणों की तेजी से बढ़ाता है और जब उन किरणों का प्रकाश गुलमोहर की पत्तियों पर पड़ता है तब उसका सौंदर्य द्विगुणित हो जाता है। कभी देखिये गौर से गुलमोहर की पत्तियों को, हल्का नारंगी और गहरा लाल एक लंबी और छायादार डाल जब आप उसके नीचे से गुजरते है तो मन उसका रूप देखकर प्रसन्न हो जाता है।
लखनऊ में पुराने इलाकों में आज भी पुराने और घने गुलमोहर हैं जो धूप को रोककर सुंदर छांव देते हैं कहीं कहीं तो पूरी डाल ही रास्ते को छांव से भर देती है मानो प्रकृति कह रही हो आओ मैं तुम्हें इस तपती दोपहर में सुंदर और रंगीन छांव दूंगी। गुलमोहर की पत्तियों की एक और विशेषता है कि जब हवा चलती है तो धीरे धीरे पत्तियां हिलतीं है और मन को आनंदित करतीं हैं।
आज हम जीवन की भागदौड़ में इतने व्यस्त हो गए हैं कि प्रकृति के इस सौंदर्य को देखते ही नहीं हैं और गुलमोहर के पेड़ लगाते भी नहीं। घर में केवल गमले और उन गमलों में छोटे छोटे पौधे।
यदि आज पर्यावरण की बात करें तो देखिए कि इन पौधों से कितनी धूप बचती है और सुंदरता भी अद्भुत। जैसे ईश्वर ने प्रकृति को गर्मियों का उपहार दिया हो अमलतास पीले झूमर सा डोलता है ऐसी गर्मी में और गुलमोहर लाल, वही चंपा सुगंध बिखेरता है। गुच्छेदार फूलों से भरकर।
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने निबंध शिरीष के फूल में लिखा है, कम फूल ही इतनी गर्मी में फूल सकने की हिम्मत रखतें हैं । हमें इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए जीवन में सुख दुख लाभ हानि की धूप में भी इन पौधों की तरह डटे रहें और अपनी सुन्दरता बिखेरते रहें।
(लेखिका नवयुग कन्या महाविद्यालय, लखनऊ के हिन्दी विभाग में कार्यरत हैं)