लोकसभा चुनाव महोत्सव का पांचवां चरण भी संपन्न हो गया। इसी के साथ आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर भी तेज हो गया। राजनीतिक लाल-बुझक्कड़ी भी अपने चरम पर पहुंच गई। जनता ने किसे जिताया, किसे हराया, इसे लेकर कयासों का बाजार गर्म हो गया। विपक्ष का दावा है कि भाजपा को सत्ताच्युत करने के लिए जनता कमर कस कर घर से बाहर निकल रही है। चरण दर चरण घटता वोट प्रतिशत अलबत्ते राजनीतिक दलों की चिंता का सबब बना हुआ है। मतदान में यह घटोतरी किसके लिए शुभ होगी, किसके लिए अशुभ, यह तो चार जून को ही ज्ञात होगा लेकिन इसी बहाने कुछ लोगों को अपना चुनावी राग अलापने का मौका जरूर मिल गया है। जनता अगर रायबरेली में राहुल वापस जाओ का नारा लगाए, सड़क पर मील का पत्थर गाड़कर उन्हें वॉयनाड का रास्ता दिखाए तो भी आलोचना भाजपा की ही होती है। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ दीवार लेखन हो जाए तो उसमें भी भाजपा की साजिश तलाशी जाने लगती है। भाजपा की कारस्तानी बताया जा रहा है। वैसे भी विरोध तो समर्थ व्यक्ति का ही होता है। जो लोग ईवीएम की बजाय बैलेट पेपर से चुनाव कराने के हिमायती थे और इसके लिए अदालतों का दरवाजा खटखटा रहे थे। बिहार में उनके घटक दल पर ईवीएम लूटने के आरोप लगे हैं। बिहार के सारण में राजद प्रत्याशी रोहिणी आचार्य के समर्थन में कुछ बूथ लूटने के आरोप लगे हैं। बंगाल में कई जगहों पर चुनावी हिंसा की भी खबर है। वैसे भी पश्चिम बंगाल ऐसा राज्य है जहां बिना रक्तपात के चुनाव कराना शासन-प्रशासन के लिए अक्सर बड़ी चुनौती रहा है। उत्तर प्रदेश के रायबरेली में कांग्रेस ने कुछ ग्राम प्रधानों पर बूथ कब्जाने के आरोप लगाए हैं। कांग्रेस, सपा, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का दावा है कि भाजपा बहुमत के आंकड़े से इस बार दूर रह जाएगी जबकि 400 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रही भाजपा का दावा है कि विपक्ष इस बार पूरी तरह बेरोजगार हो जाएगा और राहुल गांधी को देश में कांग्रेस ढूंढ़ो यात्रा निकालनी पड़ेगी। सबके अपने दावे हैं और अपने तर्क हैं। चुनाव को लेकर कौन क्या सोचता है, यह तो वही जाने लेकिन जनता ने इस बात का पक्का मन बना लिया है कि उसे मौजूदा चुनाव में किसका साथ देना है। जनता हर बार की तरह इस बार भी मौन धारण किए हुए हैं। जो कुछ भी बोल रहे हैं, राजनीतिक दल बोल रहे हैं या वक्त की नजाकत की नब्ज टटोल रहे राजनीतिक पंडित बोल रहे हैं। जो राजनीतिक पंडित प्रधानमंत्री नरेंद मोदी के चार सौ पार के नारे से सहमति जता रहे हैं, उन्हें गोदी मीडिया के नाम से पुकारा जा रहा है लेकिन चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स के सर्वे जिसमें भाजपा को 435 सीटें मिलता दिखाया गया है, उसे क्या कहा जाएगा? पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हामिद तरार के भाजपा को चार सौ से अधिक सीटें मिलने के आकलन को आखिर किस नजर से देखा जाएगा। आलोचना की जा सकती है लेकिन जनता चुनाव में क्या सोचती है, बड़ी बात तो यह है। अच्छा होता कि राजनीतिक दल अपने मुंह मियां-मिट्ठू बनने की बजाय अपनेे कर्मपथ पर आगे बढ़ते, यह उनके लिए ज्यादा मुफीद होता। चुनाव में हार-जीत तो लगी रहती है कि लेकिन राजनीतिक दलों को कोई ऐसी बात एक दूसरे के प्रति हरगिज नहीं करनी चाहिए जिससे कि सामने मिलने पर नजर मिलाना भी कठिन हो जाए। सत्ता तो आती-जाती रहती है लेकिन लोकव्यवहार में कटुता नहीं होनी चाहिए, यही मौजूदा वक्त का तकाजा भी है।