जरुरतमन्दों की मदद करने में समाज पीछे नहीं हटता। करुणा और दया सहज मानवीय गुण हैं किन्तु इनका नाजायज फायदा उठाते हुए पेशेवर भिखारियों की दिनानुदिन बढ़ती संख्या चिन्ता का सबब बनी हुई है। वैसे तो भारत में भिक्षावृत्ति को अपराध माना गया है और भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम के अन्तर्गत पहली बार भीख मांगते पकड़े जाने पर दो साल तथा दूसरी बार पकड़े जाने पर दस साल की जेल का प्रावधान है। आईपीसी की धारा 133 में भीख मांगने को पब्लिक न्यूसेंस मानते हुए दंड का प्रावधान किया गया है। साथ साथ इस कानून के अन्तर्गत भिखारियों के पुनर्वास और प्रशिक्षण देकर सामान्य जीवन में लौटने के उपाय करने का भी प्रावधान है। इसके बावजूद देश में मुख्य तिराहों और चौराहों पर, बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन सहित धार्मिक स्थलों पर भिखारियों का जमावड़ा है।
गत दिनों यूपी की राजधानी में एक मीडिया एजेंसी द्वारा पड़ताल में सामने आया कि महंगी गाड़ियों से इन भिखारियों को शहर के चौराहों पर लाकर छोड़ा जाता है और देर शाम इन्हें वापस ले जाया जाता है। इसी तरह शहर के प्रमुख चौराहों पर लाल बत्ती होने पर रुकने वाले वाहनों के शीशे पोंछने और उसके बदले पैसे मांगने का चलन भी खूब चल रहा है। बताया जाता है कि गाड़ी पोंछने के बहाने फास्टैग को स्कैन कर पैसे चुराने की तकनीकि भी ईजाद हुई है।
प्रमुख शहरों में चौराहों पर गोद में छोटे बच्चे लिए महिलायें भी भीख मांगती देखी जा सकती हैं। इसी तरह बुजुर्ग व अधेड़ आयु के लोग प्रायः चौराहों पर आवश्यक उपयोग की वस्तुएं बेंचते हुए भी देखे जाते हैं। कई बार कुछ एनजीओ के माध्यम से बच्चों को पकड़कर उसे चाइल्ड लाइन भिजवाने अथवा उनके पुनर्वास के प्रयास के बाद भी भिखारियों की बढ़ती संख्या चिन्ता का सबब बनी हुई है। इस गम्भीर समस्या के प्रति प्रशासन और समाजसेवा के क्षेत्र में काम करने वाले स्वयंसेवियों को आगे आना चाहिए।