चुनाव में नाम और पहचान की बड़ी अहमियत होती है। कौन लड़ रहा है और किस राजनीतिक दल से जुड़ा है। उसकी छवि कैसी है? उसकी लोकप्रियता का ग्रॉफ क्या है, जिस दल से जुड़ा है,उसका इतिहास और भूगोल क्या है? कार्य संस्कृति कैसी है? राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर उसका कार्य व्यवहार कैसा है? हालांकि जनता सब कुछ जानती है लेकिन वह राजनीतिक दलों के अपराधों को भूल जाती है या फिर बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेहु की अवधारणा में विश्वास कर अपनी दुनिया में खो जाती है। ये सारे सवाल प्रत्याशी बनते ही लोगों के दिलो दिमाग में सहज ही कौंध उठते हैं। वैसे भी व्यक्ति की पहली पहचान उसके नाम, रूप और पते से होती है। कभी-कभी लैंडमार्क से भी काम चल जाता है। सोशल मीडिया के मौजूदा दौर में तो लोग अपने पते का लोकेशन तक डालने लगे हैं ताकि उनके यहां आने वालों को कोई तरुद्दत न हो। अपरिचित व्यक्ति से मिलना हो तो लोग अपने शर्ट का कलर तक बता देते हैं। लोकसभा चुनाव के दो चरण शेष हैं और वहां का राजनीतिक समर और रोमांचक हो गया है। इस जंग को फतह करने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष ने एड़ी से चोटी तक का जोर लगाया हुआ है। इन चरणों में दलितों और पिछड़ों की बड़ी भूमिका रहने वाली है। इसलिए सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही एक दूसरे पर दलित और पिछड़ा विरोधी होने का आरोप लगा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो आरक्षण के बहाने देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की भूमिका पर अंगुली उठाई है। उन्होंने कहा कि दलितों और पिछड़ों के आरक्षण पर अगर भीमराव अंबेडकर अड़ नहीं गए होते तो जवाहर लाल नेहरू उन्हें आरक्षण देना ही नहीं चाहते थे। प्रधानमंत्री के इस नए दांव से कांग्रेस एक बार फिर लोकसभा चुनाव के राजनीतिक मैदान में खुद को बेहद असहज महसूस कर रही है। उन्होंने तो इस गठबंधन को भ्रष्टाचारियों, घोटालेबाजों,आतंकवादियों का नया ठिकाना बता दिया है। इस चुनाव में कौन जीतेगा, कौन हारेगा, यह भले ही चार जून को तय हो लेकिन इससे पूर्व जीत का दावा पेश करने में कोई भी राजनीतिक दल पीछे क्यों रहे? समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के दावों पर यकीन करें तो चार सौ पार भाजपा नहीं, विपक्षी गठबंधन कर रहा है। भाजपा 140 सीटों पर भी जीत के लिए तरस जाएगी। उत्तर प्रदेश में वह अकेले वाराणसी में ही संघर्ष में है। हालांकि इंडी गठबंधन से जुड़े राजनीतिक दलों की इस मामले में सर्वथा अलग-अलग राय है। सब इस चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को हारता तो बता रहे हैं लेकिन संख्यात्मक लिहाज से उनकी गणित अलग-अलग है। जहां तक अमित शाह का सवाल है तो उन्होंने कह दिया है कि पांच चरणों के चुनाव में भाजपा लगभग 310 सीटें जीत चुकी हैं। दो चरणोंके चुनाव अभी होने हैं, चार जून को दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का मानना है कि देश की जनता उनके लिए खुद भाजपा से लड़ रही है। जनता उसके लिए लड़ती है, जो उसके लिए लड़ता है लेकिन जो जनता के लिए लड़ रहे अधीर रंजन को पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को खुश करने के लिए डांटे, जनता उसका साथ क्यों देगी? कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कंप्लीट बेड रेस्ट देने की बात कर रहा है। राजनीतिक विश्राम किसे दिया जाना चाहिए। यह विचार का विषय है। नेता अपनी नेतृत्व क्षमता के लिए जाना जाता है।जो देश के समग्र विकास की चिंता करे, देश को जागरूक करे, उसे नित नए विषय से जोड़े, उसकी सोच और अनुसंधान की दशा-दिशा तय करे। प्रधानमंत्री ने वर्ष 2014 से लेकर आज तक देश की जनता से संवाद करने का, उनसे मन की बात करने का एक भी अवसर हाथ से नहीं जाने देते। वाराणसी में महिलाओं से संवाद कर उन्होंने कहा कि महिलाओं के बिना जब घर नहीं चलता तो देश कैसे चल सकता है। बाबा विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा का जिक्र कर उन्होंने मातृशक्ति का आवाहन किया है। मतलब यह कि मोदी-योगी समाज के सभी वर्गों के लोगों को जोड़कर चल रहे हैं। विपक्ष भी सबको साधने के लिए प्रयासरत है लेकिन चुनाव नतीजा किसके पक्ष में होगा, हर आम और खास की इस पर नजर है। पानी में जितना गुड़ डालेंगे, उतना ही मीठा होगा लेकिन यह मिठास तब और प्रभावी होता है जब इसे सतत बनाए रखने का प्रयास हो। काश, राजनीतिक दल इस छोटी सी बात को समझ पाते। जनता प्यार, सहकार चाहती है। केवल उपहारों से वह नहीं रीझती, राजनीतिक दलों को आज नहीं तो कल इस पर विचार करना ही होगा।