राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता। कॉरपोरेट सेक्टर पर भी यही बात लागू होती है। अपने मतलब के लिए कब कौन, कहां दगा दे जाए, कहा नहीं जा सकता। चुनाव के अवसर पर अपने फायदे के लिए इधर-उधर कुलांचे भरना राजनीति से जुड़े लोगों के लिए आम बात है। संदेह के बीज से न तो विश्वास के पेड़ विकसित होते हैं और न ही विश्वास और विकास के फल उपजते हैं। महाराज दशरथ के मामले में सामान्य धारणा थी कि वे शब्दभेदी बाण चलाते थे। कुछ ऐसा ही पृथ्वीराज चौहान के बारे में भी कहा जाता था लेकिन शब्दभेदी बाण चलाने की बड़ी कीमत इन दोनों ही महापुरुषों को झेलनी पड़ी थी। भारत की राजनीति में कोई शब्दबेधी बाण चलाता है या नहीं, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन शब्दों के बाण चलाने में सभी तीसमार खां हैं। सभी अतुलनीय हैं। आरोपों के पिटारे से वे ऐसी सनसनीखेज जानकारी प्रकट करते हैं कि अच्छे भले सियासी दल में मतभेद पड़ जाए। अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को बदलना चाहते हैं और अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं। पब्लिक के बीच न जाने कहां से यह अफवाह भी फैलाई जा रही है कि अगर भाजपा इस बार चार सौ से अधिक सीटें नहीं जीती तो नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। यह किसका शिगूफा हो सकता है, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तो तय है ही कि भाजपा इस बार का चुनाव विकसित भारत के संकल्प के साथ लड़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही कह चुके हैं कि चुनाव के बाद वे देश हित में कई बड़े और कड़े निर्णय लेंगे। ऐसे में वे अपने मिशन को अधूरा तो नहीं छोड़ने वाले। खैर, केजरीवाल की चिंता शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने जरूर बढ़ा दी है। उन्होंने कहा है कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने लोकसभा चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी को पंजाब में विभाजित करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ एक समझौता किया है, जैसा कि महाराष्ट्र में शिवसेना के एकनाथ शिंदे ने किया था। वजह यह है कि पंजाब में मान ने भी कमोवेश दिल्ली जैसा ही शराब घोटाला किया है और गिरफ्तारी से बचने का यही एक मार्ग है। उद्धव ठाकरे का आरोप है कि अगर नरेंद्र मोदी को केंद्र में सरकार बनाने से रोका न गया तो काले दिन देखने पड़ सकते हैं। यह काले दिन किसके हो सकते हैं, जनता के या विपक्षी दलों के, यह उन्होंने विचार के लिए छोड़ दिया है। वैसे भी जिस तरह भाजपा नेता पाकिस्तान पर हमले कर रहे हैं और पाक अधिकृत कश्मीर को लेने की बात कर रहे हैं, उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। सभी राजनीतिक दल किसी न किसी पार्टी को अपने विरोधी दल की बी टीम करार दे रहे हैं। भगवंत सिंह मान बादल परिवार की निष्ठा पर सवाल उठा रहे हैं और बादल ने उनकी ही निष्ठा पर सवाल उठा दिए हैं। केजरीवाल ने वैसे ही अपने किसी मातहत नेता को अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाया था और इस तरह के आरोप के बाद तो उन्हें अपनी परछाई से भी डर लगेगा। केजरीवाल ने जिस चतुराई से अपना एजेंडा सेट किया था, उसी चतुराई से बादल ने नहले पर दहला रख दिया है। कौन सा नेता कब पलटी मार जाए, यही देखने में रणनीति का कचूमर निकल रहा है। कुल मिलाकर आपन झुलनी संभारूं कि तोंय बालमां वाली स्थिति है।